Usko jagaane ke liye printing free honi chahiye ... what do you mean... Patrakaar bhukha kyo hai ... uske pass ... sab kuch hai par Janta padti nahi hai ..ya video dekhti hai .... kya samajhte ho ...yaroo...
Jago hindustaniyo not Videshiyo
Thursday, July 21, 2011
Wednesday, December 29, 2010
Tuesday, November 9, 2010
Saturday, October 16, 2010
Tuesday, May 25, 2010
अगर जाति आधारित जाति, जनगणना और आरक्षण: सही बहस की जरूरत, ये क्या है ?
अगर इसी में मै एक शब्द जोड़ दू .......क्या खाप पंचायते सही है ? एक ओर जाती तोसो अभियान दूसरी ओर ,जाती तोड़ो अभियान किसका समर्थन करोगे .....
बहस बहस है ......
मुम्बई में मेरी गणना हो चुकी है। बी एम सी के विद्यालय के एक शिक्षक जो छुट्टियां मनाने गाँव न जा सके इस कार्य को सम्पन्न करने आए थे। उन्होने बाक़ी सवाल तो किए मगर जाति के बारे में नहीं पूछा। जब मैंने सवाल किया तो उन्होने बताया कि सब कुछ (सारे सरनेम्स) कम्प्यूटर में फ़ीड हैं; यानी तिवारी डालते ही वह मुझे ब्राह्मण की श्रेणी में सरका देगा। वैसे यह प्रणाली ठीक भी है, आम लोग भी ऐसे ही औपरेट करते हैं। रही बात कुमारादि या अन्य 'भ्रामक' सरनेम की तो उन मौक़ो पर उन्हे सवाल पूछने का निर्देश है।
बाक़ी आप की बात सब सही है कि जाति और धर्म के समीकरण में कोई आपसी सम्बन्ध नहीं। इस देश के बहुतायत मुसलमान और ईसाई अधिकतर दलित समाज से धर्म परिवर्तन किए हुए लोग हैं या पूर्व-बौद्ध हैं। बौद्धों के बारे में अम्बेडकर ने स्वयं लिखा है हालांकि लोग उनकी प्रस्थापना को मानने में हिचकते हैं। मुझे उनकी बात तार्किक लगती है। इस नज़रिये से मुसलमान और वे ईसाई जिनके पूर्वज आदिवासी या दलित समाज से थे, आरक्षण के अधिकारी होने चाहिये, मगर राजनीति इस के आड़े आती है।
और ये बात भी सही है कि जाति जान लेने भर से कोई जातिवादी थोड़े हो जाता है। ये तो आँधी के डर से रेत में सर डाले रखने वाली बात है। मैं जाति आधारित जनगणना का समर्थन करता हूँ।
अब आप भी अपनी राय से अवगत कराये ! क्या आप अपनी राय भी देंगे ??
बहस बहस है ......
मुम्बई में मेरी गणना हो चुकी है। बी एम सी के विद्यालय के एक शिक्षक जो छुट्टियां मनाने गाँव न जा सके इस कार्य को सम्पन्न करने आए थे। उन्होने बाक़ी सवाल तो किए मगर जाति के बारे में नहीं पूछा। जब मैंने सवाल किया तो उन्होने बताया कि सब कुछ (सारे सरनेम्स) कम्प्यूटर में फ़ीड हैं; यानी तिवारी डालते ही वह मुझे ब्राह्मण की श्रेणी में सरका देगा। वैसे यह प्रणाली ठीक भी है, आम लोग भी ऐसे ही औपरेट करते हैं। रही बात कुमारादि या अन्य 'भ्रामक' सरनेम की तो उन मौक़ो पर उन्हे सवाल पूछने का निर्देश है।
बाक़ी आप की बात सब सही है कि जाति और धर्म के समीकरण में कोई आपसी सम्बन्ध नहीं। इस देश के बहुतायत मुसलमान और ईसाई अधिकतर दलित समाज से धर्म परिवर्तन किए हुए लोग हैं या पूर्व-बौद्ध हैं। बौद्धों के बारे में अम्बेडकर ने स्वयं लिखा है हालांकि लोग उनकी प्रस्थापना को मानने में हिचकते हैं। मुझे उनकी बात तार्किक लगती है। इस नज़रिये से मुसलमान और वे ईसाई जिनके पूर्वज आदिवासी या दलित समाज से थे, आरक्षण के अधिकारी होने चाहिये, मगर राजनीति इस के आड़े आती है।
और ये बात भी सही है कि जाति जान लेने भर से कोई जातिवादी थोड़े हो जाता है। ये तो आँधी के डर से रेत में सर डाले रखने वाली बात है। मैं जाति आधारित जनगणना का समर्थन करता हूँ।
अब आप भी अपनी राय से अवगत कराये ! क्या आप अपनी राय भी देंगे ??
Friday, February 19, 2010
जागो कुम्भकरणों
जागो हिन्दुस्तान हिंदुस्तान मंच
जागो हिन्दुस्तान हिंदुस्तान मंच
क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
जब कभी हमारे परिवार में कोई परेशानी आती है तो हम एडी-चोटी लगा कर उसको दूर कर देते है, परन्तु आज हमें क्या हो गया कुछ लोग हमारे घर में घुस कर हमारे बच्चो को परिवार के सदस्यों को कुचल रहे है और हम हाथ पर हाथ रखे सुस्ता रहे है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
एक साम्यवादी देश हमारी देश कि आर्थिक स्थति की बीन बजाने पर तुला हुआ है और कामयाब भी हो रहा है ! उसके बनाये खिलोने, दूध दिवाली और ईद पर झिलमिल करने वाली रौशनी हो या मोबाइल सब अवल दर्जे का घटिया सामान वह बड़ी आसानी से बेच रहा है और हमारे श्रमिक बेरोजगार हो रहे है मतलब तो दरी तलवार से कटे जा रहे एक तो हमारे लोग बेरोजगार हो रहे है दूसरे हमारी आर्थिक नीतियों का सत्यानाश हो रहा है ! एक तो कड़वा करेला दूजा निम् चढ़ा ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
भारत की संसद पर हमला करने वाला अफजल हो या नोटंकी करने वाला कसाब ये दोनों हमारे संविधान की मजाक उड़ा सकते है लेकिन हम इनको फाँसी नहीं दे सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(मेरा मत है की इन जैसो को बीच में से चीर कर नमक और मिर्च भर कर चोराहे पर मरने के लिए छोड़ देना चाहिए !)
विश्व मानको की कसोटी पर खरा उतरने पर ही सामान ख़रीदा जाये ऐसे नियम अंतर्राष्ट्रीय कानून के दायरे में आते है ! लेकिन हम आज कुछ देशो से घटिया सामान लेते ना जाने किस दबाब में ! जबकि अमेरिका कद्दू भी इन मानको के आधार पर खरीदता है ! क्या हम इतने कमजोर हो गए है ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है ! हमारा युवा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन में पिटता रहे पर हम और हमारी सरकार कान में तेल डाल अपने मानव संसाधन को पीटने और देश छोड़ कर जाने से नहीं रोक सकते क्योकि उनके लिए यहाँ सही रोज़गार नहीं ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
(एक बात तो बताना ही भूल गया हम अभी तक विश्व बैंक के कर्जे टेल दबे है तो हम आजाद तो है नहीं)
होटलों में माफ़ कीजियेगा पांच सितारा होटलों में आम लोगो और किसानो के लिए बनायीं गयी योजनाओ का लोकर्पण किया जाता है, जिनका बजट ४ से ५ लाख रूपये होता है ! वहां मेरी विरादरी में से कुछ लोग तो केवल लाल पानी, कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के लिए जाते है, उनका बड़ा सम्मान होता है और तो और तोहफे भी दिए जाते है जिसका बजट अलग से पास किया जाता है !
(मेरा कुत्ता भी कुकीज और मुर्गे की टांग खाने के बाद मेरे ही गुण गता है मेरा विरोध नहीं करता कभी)
परन्तु देश की सरहद की और आतंरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने वाले एक सिपाही को प्रतिमाह १००००-२०००० से ज्यादा नहीं दे सकते उनके लिए बजट नहीं ला सकते ! क्या हम कुछ नहीं कर सकते ? अजीब सा लगता है !
ऐसा क्या क्या है जो हम नहीं कर सकते जरा गौरफरमाए:--
-हम तकनीक होते हुए भी आईटी में नंबर एक नहीं हो सकते क्योकि सत्यम घोटाला, सुखराम का टेलीफ़ोन घोटाला भी तो हमने ही किया है !
-कृषि प्रधान देश होते हुए भी हम नंबर एक नहीं हो सकते, ना ही किसानो के लिए बढ़िया योजनाये ला सकते और ना ही हम पशुधन में वृद्धी कर सकते ! (चारा घोटाला कोन करेगा)
-हम सुरक्षा कर्मियों की शहादत को भूल सकते है पर उनके परिवारों की जिम्मेदारी नहीं ले सकते ! (बोफोर्स घोटाला और ताबूत घोटाला कोन करेगा)
-हम किसी आतंकी देश या व्यक्ति को मुहतोड़ जबाब नहीं दे सकते
-हम एक मंच पर समस्त भारतीयों को नहीं ला सकते
-हम (मेरे सहित) गाल बजा सकते है, लिख सकते है पर कुछ कर नहीं सकते
-हम शिक्षा का स्तर नहीं सुधार सकते
-हम कश्मीर, अरुणाचल को अपना राज्य नहीं कह सकते (चाइना और पाक से हमको डर लगता है जी दिल तो बच्चा है जी)
-हम भारतीय नहीं कहलवा सकते शर्म आती है
-हम रोजगार नहीं दे सकते
-हम सत्यता को नहीं मन सकते
-हम किसी को अब गले नहीं लगा सकते
ऐसे ही ना जाने कितनी बातें हम नहीं कर सकते पर कुछ तो होगा जो हम कर सकते है ?
-हम अमेरिका के तलुए चाट सकते है अपने रिश्ते और भी मजबूत कर सकते है भले ही कोई गाँधी जी की समाधि पर कुत्ता घुमाये
-पडोसी से वार्ता कर सकते है उसको बेवजह झुक कर सलाम कर सकते है ताजमहल घुमने के लिए बुला सकते है
-बोफोर्स, ताबूत घोटाला कर सकते है
-विदेशी बांको में कला धन जमा कर सकते है
-हम गाँधी जी के अलावा बाकी सब क्रांतिकारियों को भूल सकते और गाँधी परिवार की जयंती और मरण दिवस माना सकते है
-भाषा के नाम पर हिंदुत्व के नाम पर लोगो का गला काट सकते है, हम बिहारी बन सकते है मद्रासी बन सकते है, हम मराठी है उत्तर भारतीय बन सकते है
-कश्मीर में घुसपैंठ करने दे सकते है
-मजदूरो को मजदूर बना रहने दे सकते है
-अधिकारी की कुर्सी पर बैठ कर किसी भी लड़की को रुचिका, मधुमिता बना सकते
-किसी भी भारतीय का अंग किसी विदेशी खलीफा की बेच सकते है
यहाँ तक की हम कुछ पैसो के लिए अपनी कलम (आज जो प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कर रहा है) को भी बेच सकते है ! अब हमारा मूल्य कोई भी लगा सकता है !
सवाल बस यही कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते,
आखिर हम कितने पानी में है यह सोचना जरुरी है कुछ करना जरुरी है वरना खड़े-खड़े तमाशा देखते-देखते खुद तमाशा बन जायेंगे ................
सितमगर वक्त का तेवर बदल जाये तो क्या होगा !
मेरा सर और तेरा पत्थर बदल जाये तो क्या होगा !! (नबाब देवबंद जी)
कुछ तो शर्म करो इस देश का नमक खाने वाले बेशर्मो ...कब तक इस देश का खाकर पाकिस्तान के गुण गाते हो , क्या अब फिर एक बार किसी नै क्रांति को जन्म देने का इरादा है , जो शांति के लिये युद्ध लड़ा जाएगा .जागो हिन्दुस्तान हिंदुस्तान मंच
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