Tuesday, May 25, 2010

अगर जाति आधारित जाति, जनगणना और आरक्षण: सही बहस की जरूरत, ये क्या है ?

अगर इसी में मै एक शब्द जोड़ दू .......क्या खाप पंचायते सही है ? एक ओर जाती तोसो अभियान दूसरी ओर ,जाती तोड़ो अभियान किसका समर्थन करोगे .....
बहस बहस है ......
मुम्बई में मेरी गणना हो चुकी है। बी एम सी के विद्यालय के एक शिक्षक जो छुट्टियां मनाने गाँव जा सके इस कार्य को सम्पन्न करने आए थे। उन्होने बाक़ी सवाल तो किए मगर जाति के बारे में नहीं पूछा। जब मैंने सवाल किया तो उन्होने बताया कि सब कुछ (सारे सरनेम्स) कम्प्यूटर में फ़ीड हैं; यानी तिवारी डालते ही वह मुझे ब्राह्मण की श्रेणी में सरका देगा। वैसे यह प्रणाली ठीक भी है, आम लोग भी ऐसे ही औपरेट करते हैं। रही बात कुमारादि या अन्य 'भ्रामक' सरनेम की तो उन मौक़ो पर उन्हे सवाल पूछने का निर्देश है।
बाक़ी आप की बात सब सही है कि जाति और धर्म के समीकरण में कोई आपसी सम्बन्ध नहीं। इस देश के बहुतायत मुसलमान और ईसाई अधिकतर दलित समाज से धर्म परिवर्तन किए हुए लोग हैं या पूर्व-बौद्ध हैं। बौद्धों के बारे में अम्बेडकर ने स्वयं लिखा है हालांकि लोग उनकी प्रस्थापना को मानने में हिचकते हैं। मुझे उनकी बात तार्किक लगती है। इस नज़रिये से मुसलमान और वे ईसाई जिनके पूर्वज आदिवासी या दलित समाज से थे, आरक्षण के अधिकारी होने चाहिये, मगर राजनीति इस के आड़े आती है।
और ये बात भी सही है कि जाति जान लेने भर से कोई जातिवादी थोड़े हो जाता है। ये तो आँधी के डर से रेत में सर डाले रखने वाली बात है। मैं जाति आधारित जनगणना का समर्थन करता हूँ।

अब आप भी अपनी राय से अवगत कराये ! क्या आप अपनी राय भी देंगे ??

8 comments:

Unknown said...

you r very rite sir,
word verification hata dein

mydunali.blogspot.com

Anonymous said...

"मुसलमान और वे ईसाई जिनके पूर्वज आदिवासी या दलित समाज से थे, आरक्षण के अधिकारी होने चाहिये" - काबिले गौर - मैं भी जाति आधारित जनगणना का समर्थन करता हूँ।

Unknown said...

जाति आधारित जनगणना सामाजिक न्याय की स्थापना और संविधान के प्रावधानों को लागू करने के लिये अत्यन्त आवश्यक है? वर्तमान सन्दर्भों में इसकी जरूरत को नकारा नहीं जा सकता। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, यह उनके भी हित में है। शुभकामनाओं सहित।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इसमें वर्तमान में ४२९० आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८)

virendra sharma said...

'jaat naa puchho saadhu ki puchh lijiye gyaan '
vyarth kaa kuleentaa bodh karvaati hai 'jaati'.
veerubhai1947.blogspot.com

jayanti jain said...

your question is important

shyam gupta said...

--"जाति न पूछो साधु की.." साधु के लिये है न कि जन सामान्य के लिये ।
जाति तो पता होना ही चाहिये.

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

बाल भवन जबलपुर said...

सराहनीय अभिव्यक्ति